क्यों उस भ्रम में जीते हो कि तुम्हारे पास क्या है...
क्यों इस अहंकार में जीते हो कि सब कुछ तुम्हारा ही है...
किस बात का घमंड है? किस कारण की दरिद्रता है?
दो पल ही लगते हैं जीवन के ठहर जाने में...
क्या था तुम्हारा? क्या लेकर आए थे? और क्या लेकर जाओगे?
यह संसार तो बस चकाचौंध की एक दिखावटी प्रदर्शनी है...
स्थायित्व खोजो...
समय ही है जो राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है।
तुम नासमझ हो, जो समझते नहीं हो...
तुम सौभाग्यशाली हो, कि "आज" तुम्हारे पास है।
तुमसे पहले भी न जाने कितने आए और चले गए — राजा, महाराजा...
तुम केवल अपने अहम और भ्रम से बाहर निकलो...
दुनियादारी की बातों में न उलझो...
याद रखना — किसी को नहीं पता कल क्या होगा,
तो फिर उनके शब्दों का क्या, उनकी भावनाओं का क्या...
तुमसे पहले भी यह दुनिया थी, तुमसे बाद भी रहेगी।
नगरपालिका के पंजीकरण में एक संख्या बनने से पहले,
सिर्फ एक नाम बनने से पहले — उठो। स्वयं को जागृत करो।
मुलाकात होगी — बस उन 30 मिनटों के लिए, उस श्मशान गृह में...
उसके बाद दुनिया आगे बढ़ जाएगी —
वो भी जिन्हें तुम अपना मानते थे, और वो भी जो पराए थे...
तो फिर किस बात का घमंड है, प्रिय? किस बात का भ्रम है?
निष्ठापूर्वक आपका व्हाइट फैंग एकलव्य
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